क्या होता है जब बिहार में किसी भी थोड़े सम्पन्न परिवार में बच्चे का जन्म होता है? उसके जन्मते ही उसके बिहार छूटने का दिन क्यों तय हो जाता है? जब सभी जानते हैं कि मूंछ की रेख उभरने से पहले उसको अनजान लोगों के बीच चले जाना है— तब भी क्यों उसको गोलू-मोलू-दुलारा बना के पाला जाता है? वही ‘दुलारा बच्चा’ जब आख़िरकार ट्रेन में बिठाकर बिहार से बाहर भेज दिया जाता है तब क्या होता है उसके साथ? सांस्कृतिक धक्के अलग लगते हैं, भावनात्मक अभाव का झटका अलग— इनसे कैसे उबरता है वह? क्यों तब उसको किसी दोस्त में माशूका और माशूका में सारे जहाँ का सुकून मिलने लगता है? ‘एनआरबी’ के नायक राहुल की इतनी भर कहानी है— एक तरफ यूपीएससी और दूसरी तरफ शालू. यूपीएससी उसकी जिंदगी है, शालू जैसे जिंदगी की ‘जिंदगी’. एक का छूटना साफ़ दिखने लगता है और दूसरी किनारे पर टंगी पतंग की तरह है. लेकिन इसमें हो जाता है लोचा। क्या? सवाल बहुतेरे हैं. जवाब आपके पास भी हो सकते हैं. लेकिन ‘नॉन रेजिडेंट बिहारी’ पढ़ कर देखिए— हर पन्ना आपको गुदगुदाते, चिकोटी काटते, याद-गली में भटकाते ले जाएगा एक दिलचस्प अनुभव की ओर.
नॉन रेज़िडेंट बिहारी | Non Resident Bihari
Author
Shashikant Mishr
Publisher
Funda, Radhakrishan
No. of Pages
120
























