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गोस्वामी तुलसीदास की रामभक्ति, क्रान्तदर्शिता और मानवीय मूल्यों की संवेदनात्मक और कलात्मक अभिव्यंजना विश्व-विख्यात है। यही कारण है कि साहित्य मनीषियों ने 'सूर-सूर तुलसी ससी" कविता करके तुलसी न लसे कविता लसी पा तुलसी की कला' कहकर इस विश्ववंद्य विभूति का सम्मान किया। गोस्वामी जी के रचना संसार में राम की अनन्य भक्ति तो है ही साथ ही चरित्र निर्माण की वे सिद्ध मंत्रोक्तियाँ भी हैं जो उनकी रचना धर्मिता को शाश्वत बनाती हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में राम चरित मानस और दोहावली से कतिपय दोहे लिए गए हैं जिनमें नीति-भक्ति और दर्शन की सरस त्रिवेणी प्रवाहित हुई है। ये दोहे सुधी और जिज्ञासु पाठकों के लिए सुधा लेप का कार्य करेंगे, ऐसा विश्वास है। गोष्ठियों में सुनाने योग्य, विद्यालयों में प्रार्थना-स्थल पर चर्चा योग्य तथा आचरण और व्यवहार में लाने योग्य हैं।

ऐसा सम्पादन, जिसमें सरलार्थ भी है, चयन की सूक्ष्म दृष्टि भी है और विषय- बोध की यथामति विविधता भी है। कृति के प्रत्येक दोहे में सरसता संचरित हुई है। पठनीय और आचरणीय संपादित रचना, जिसमें आप अवगाहन करना चाहेंगे...

'जल पय सरिस निकाय, देखहु प्रीति की रीति भलि।

बिलग होइ रस जाइ, कपट खटाई परत पुनि।'

Tulsi Ke Saral-Saras Evam Janpriya Dohe | तुलसी के सरल-सरस एवं जनप्रिय दोहे

SKU: 9789380567662
₹200.00 नियमित मूल्य
₹170.00बिक्री मूल्य
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  • Author

    Preetam Prasad Sharma

  • Publisher

    Apolo Prakashan

  • No. of Pages

    83

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