'और एक दिन अहंकार में लिप्त हो उसे लगने लगा कि वह कोई महान मैजीशियन है कि लोग उसके बहरूप में फँस उसके प्रेम में गिरते हैं, और फिर गिरते ही चले जाते हैं। मगर दरअसल, उसकी खाल पतली होती जा रही थी, इतनी पतली कि अपनी उधड़ी हुई आत्मा उसे आईने में दिखने लगी थी... "
कहानी अपनी लौ में लुपलुप करके सुलग रही थी कि अचानक छोटे लड़के ने मुझे बीच में टोककर पूछा, “आप जिसे प्यार करती थीं, वह अब कहाँ है ?"
"पता नहीं।" मैंने कंधे उचकाकर लापरवाही से कहा । " आपने जानने की कोशिश नहीं की?"
"इच्छा नहीं हुई। "
'आप अब उससे नफ़रत करती हो?" 44
"बिल्कुल नहीं।"
“उसको कभी बद्दुआ न दी ?"
"नहीं, कभी नहीं, बल्कि मैंने हमेशा दिल से दुआ दी कि उसकी उम्र बेहद लंबी हो, इतनी लंबी कि उसके शरीर के सब अंग काम करना बंद भले ही कर दें पर उसका दिमाग़ पूरी तरह सक्रिय रहे, साल-दर-साल, बहुत सारे साल । "
तुम्हारी पीठ पर लिखा मेरा नाम | Tumhari Peeth Par Likha Mera Naam
Author
Sushma Gupta
Publisher
Hind Yugm
No. of Pages
175
























