विदुरजी स्वभाव से बड़े तेजस्वी थे। वे धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र में बड़े निपुण थे। वे क्रोध एवं लोभ से परे थे तथा वे बड़े दूरदर्शी, शान्ति के पक्षपाती तथा समस्त कुरुवंश के बड़े हितैशी थे।
धृतराष्ट्र भी विद्वान थे और विदुरजी की बातों को ध्यान से सुनते थे और अधिकतर स्वीकार भी करते थे, किन्तु उनके चरित्र की सबसे बड़ी निर्बलता उनका पुत्र मोह था।
सम्पूर्ण महाभारत में विदुर धृतराष्ट्र को पुत्रमोह छोड़ कर, नीति पथ पर चलने के लिए प्रेरित करते रहे। वैसे तो सम्पूर्ण महाभारत में हर समय विदुर ने नीति का कथन किया है पर उद्योग पर्व के आठ अध्याय 33 से 40 में ने विदुर ने धृतराष्ट्र को उपदेश दिया है। वही विदुर नीति कहलाती है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि विदुर नीति को सरल हिन्दी भाषा में समझाया गया है। संस्कृत के दोहों का पुस्तक में समावेश नहीं किया गया है। ताकि पाठकों को बोझ न लगे। अतः इस पुस्तक को आम पाठकों के लिए पठनीय बनाने का प्रयास किया गया है।
विदुर नीति | Vidur Neeti
Author
Hari Singh
Publisher
Unique Traders
No. of Pages
86