हिन्दी में साहित्य की आलोचना का दृष्टिकोण बदला हुआ-सा दिखाई पड़ता है। प्राचीन भारतीय साहित्य के आलोचकों की विचारधारा जिस क्षेत्र में काम कर रही थी, वह वर्तमान आलोचनाओं के क्षेत्र से कुछ भिन्न थी। इस युग की ज्ञान संबंधिनी अनुभूति में भारतीयों के हृदय पर पश्चिम की विवेचनशैली का व्यापक प्रभुत्व क्रियात्मक रूप में दिखायी देने लगा है; किंतु साथ-ही-साथ ऐसी विवेचनाओं में प्रतिक्रिया के रूप में भारतीयता की भी दुहाई सुनी जाती है, परिणाम में, मिश्रित विचारों के कारण हमारी विचारधारा अव्यवस्था के दलदल में पड़ी रह जाती है। काव्य की विवेचना में प्रथम विचारणीय विषय उसका वर्गीकरण हो गया है और उसके लिए संभवतः हेगेल के अनुकरण पर काव्य का वर्गीकरण कला के अंतर्गत किया जाने लगा है। यह वर्गीकरण परंपरागत विवेचनात्मक जर्मन दार्शनिक शैली का वह विकास है जो पश्चिम में ग्रीस की विचारधारा और उसके अनुकूल सौंदर्य बोध के सतत् अभ्यास से हुआ है। यहाँ उसकी परीक्षा करने के पहले यह देखना आवश्यक है कि इस विचारधारा और सौंदर्य बोध का कोई भारतीय मौलिक उद्गम है या नहीं।
काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध | Kavya or Kala tatha anya Nibandh
Author
Jayshankar Prasad
Publisher
Pankaj Publications
No. of Pages
160