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भगत सिंह का नाम जुबां पर आते ही चन्द्रमा के प्रति चकोर के अथाह प्रेम की गाथा का स्मरण हो आता है, कहते हैं कि चकोर जब चन्द्रमा की ओर जाने के लिए उड़ान भरता है तो वह पीछे नहीं देखता । ठीक वैसे ही जब भगत सिंह ने युवावस्था में अपने राष्ट्र के प्रति स्वयं को समर्पित किया तो पीछे किसी की तरफ मुड़कर देखना उनके शब्दकोश में शामिल न रहा।

प्रस्तुत पुस्तक 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' में सुप्रसिद्ध एवं विद्वान साहित्यकार श्री केशव प्रसाद गुरु (मिश्रा) ने भगत सिंह के बचपन से लेकर अन्तिम समय तक की समस्त घटनाओं का उल्लेख किया है, भगत सिंह की उस अनमोल गाथा या साहित्यकार श्री मिश्रा की लेखनी का शब्दों से वर्णन करना परे की बात है। लेखक ने जहाँ एक ओर भूमिका में भगत सिंह के अडोल इरादों में समझौतावादी नीति का विरोध और पूर्णस्वराज्य की जंगस्वरूप आन्दोलनों को उजागर किया है तो वहीं दूसरी ओर बीच पड़ाव के पश्चात 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' के मूल शब्द के अर्थ को भी बखूबी प्रस्तुत किया है।

मैं नास्तिक क्यों हूँ? | Mai Nastik Kyon Hun?

SKU: 9789383468263
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₹191.25बिक्री मूल्य
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  • Author

    Bhagat Singh

  • Publisher

    Sahityasagar Prakashan

  • No. of Pages

    93

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