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चन्द्रकान्ता सन्तति (छ: भागों में) | Chandrakanta Santati (6 Parts)

"चन्द्रकान्ता सन्तति" प्रेम और रोमांस को तिलिस्म और ऐयारी के ताने बाने से लिखा गया है सन्तति चौबीस भागों की एक वृहद रचना है। इस वृहत् उपन्यास में वर्णित एक घटना दूसरी घटना से सम्बन्धित रहती है। प्रत्येक भाग में घटनाओं का खुलासा न होकर कुछ न कुछ रहस्य छूटता ही जाता है। इन समस्त रहस्यों का उद्घाटन कथा के अन्त में ही जाकर होता है। इन चौबीस भागों को छह खण्डों में प्रकाशित किया गया है। प्रत्येक खण्ड में चार भाग है। पुस्तक में एक घटना का वर्णन पढ़ते पढ़ते आगे उसे कौतूहलजनक स्थिति पर लाकर छोड़ देती है और वहीं पर दूसरी घटनाओं का वर्णन प्रारम्भ हो जाता है। पाठक आश्चर्यचकित सा सोचने लगता है कि आगे क्या हुआ? पाठक असमंजस में खूब तन्मय होकर पढ़ता ही जाता है। और इस महागाथा को पूरा पढ़ने के बाद ही चैन पाता है।

पूर्व प्रेमचन्द युग के सभी हिन्दी उपन्यासकारों में सर्वाधिक प्रसिद्धि देवकीनन्दन खत्री को ही मिली इनके द्वारा ऐयारी तिलिस्म प्रधान रोमान्च का स्थापन भी हुआ। वे इस युग के एकमात्र बादशाह थे ।

इस महागाथा ने हिन्दी के असंख्य पाठक दिये। इस उपन्यास को पढ़ने के लिये बंगला और उर्दू के जानकारों तक ने हिन्दी सीखी। एक बार चन्द्रकान्ता सन्तति पढ़ने के बाद तिलिस्म की बाकी सभी गाथाओं को पाठक भूल जाते हैं यह लेखक की कलम का ही जादू है।

चन्द्रकान्ता सन्तति (छ: भागों में) | Chandrakanta Santati (Set of 6)

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  • Devkinandan Khatri

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