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ईश्वर-प्राप्ति की साधना को सुगम बनाने हेतु परब्रह्म श्री कृष्ण ने अपने अवतार में 'प्रेम' धर्म की स्थापना का संकल्प कर उसे भक्ति-रस का रूप दिया। उन्होंने ब्रज क्षेत्र के निवासियों के हृदय में भक्ति के अंकुर दान स्वरूप प्रदान कर विशुद्ध प्रेम और भाव - राज्य की स्थापना की थी। इस सम्पूर्ण लीला के नायक बने थे स्वयं श्री कृष्ण और नायिका थीं उन्हीं की प्रेमरस रूपा श्री राधा (जो उम्र में उनसे 15 दिन छोटी थी) लीला-रस का आस्वादन करने हेतु उन्होंने अपनी ही आनंदिनी-शक्ति का विस्तार श्री राधा-रूप में (अपने वाम अंग) से किया था। अतः श्री राधा उनकी ह दिनी शक्ति है, उनके नित्य नवीन लीला-जीवन की निधि है, जो उनके गले का हार बनकर उन्हें नित्य शोभायमान बनाये रखती हैं ये श्री कृष्ण का 1 सौंदर्य है, सौभाग्य हैं। इस स्थिति में दोनों स्वरूप प्रेम रस के सागर है- प्रेम कृष्ण अरू रस है राधा प्रेम-प्रीत दोउ परम अगाधा

श्री राधा-चरित | Shri Radha-Charit

SKU: 9788190971126
₹180.00 Regular Price
₹153.00Sale Price
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  • Radharaman Agarwal

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