वीरवर सम्राट पृथ्वीराज चौहान भारत के एक अद्भुत पराक्रमी सम्राट हुए हैं। ऐसे प्रतिभाशाली सम्राट जिन्होंने अपनी युवावस्था के पूर्व ही केवल मात्र शस्त्र प्रयोग ही नहीं, शास्त्रों का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने अपने रणकौशल से अपने साम्राज्य की सीमाएँ उत्तर में हिमालय से दक्षिण में कर्नाटक तक पूर्व में कैमूर की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में पेशावर व अटक नदी तक विस्तृत की।
सम्राट पृथ्वीराज अपने जीवन में एक अन्तिम युद्ध को छोड़कर कभी पराजित नहीं हुए। सम्राट पृथ्वीराज का अश्व जिधर बढ़ जाता, विजयश्री उसके चरणों में लोटने लगती थी। लगता है ऐसे महान सम्राट का इतिहासकारों ने उचित मूल्यांकन नहीं किया। मुस्लिम इतिहासकार जो प्रायः सभी मुस्लिम सुल्तानों के वेतनभोगी लेखक थे जो हमेशा पराजय को सन्धि और पलायन को कारण बताकर उल्लेख करने में ही रहते थे। यूरोपियन पाश्चात्य इतिहासकारों का तो उद्देश्य ही भारतीयों के स्वाभिमान को तोड़ना एवं उनमें मानसिकहीनता का निर्माण कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना था।
सम्राट पृथ्वीराज चौहान से सम्बन्धित अनेक विषयों पर विद्वानों में मत भिन्नता हैं। जैसे- चौहान राजवंश की उत्पत्ति, सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जन्मतिथि एवं जन्म स्थान, गौरी के गुजरात आक्रमण के समय चौहानों की तटस्थता, मंडोर नरेश नाहड़राव से युद्ध, पृथ्वीराज के विवाह, साम्राज्य की सीमाएँ, संयोगिता विवाह का रहस्य, गौरी के साथ कितने वृद्ध एवं युद्ध स्थान पृथ्वीराज की मृत्यु आदि । प्रस्तुत ग्रन्थों में सभी का समाधान करने का प्रयत्न किया गया है।
गौरी के अन्तिम युद्ध में पराजय के पश्चात् भी गजनी के विशाल जन समूह के बीच...
वीर शिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान । Veer Shiromani Samrat Prithviraj Chouhan1&2
Author
Vijay Nahar
Publisher
Unique Traders
No. of Pages
120