आधुनिक हिन्दी कविता में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करनेवाले विख्यात कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का एक महत्त्वपूर्ण संग्रह है 'मृत्ति-तिलक'। संग्रह की कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तियों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ ख्यातनाम देशी-विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है। प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छन्द-विधान और सहज भाव-सम्प्रेषण इन कविताओं की अद्भुत विशेषता है। अपने सरोकार और संवेदना में हिन्दी साहित्य के लिए थाती हैं ये कविताएँ। 'मृत्ति-तिलक' को पढ़ना हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करना है। सुरम्य शान्ति के लिए, जमीन दो, जमीन दो, महान क्रांति के लिए, जमीन दो, जमीन दो । जमीन दो कि देश का अभाव दूर हो सके, जमीन दो कि द्वेष का प्रभाव दूर हो सके, जमीन दो कि भूमिहीन लोग काम पा सकें, उठा कुदाल बाजुओं का जोर आजमा सकें । महा विकास के लिए, जमीन दो, जमीन दो, नए प्रकाश के लिए, जमीन दो, जमीन दो ।.
मृत्ति-तिलक | Mritti Tilak
Author
Ramdhari Singh Dinkar
Publisher
Lokbharti Prakashan
No. of Pages
70