'होनी' एवं 'अनहोनी' इन दो शब्दों का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अहम् महत्त्व है, क्योंकि इनकी आधारशिला व्यक्ति के विचारों पर टिकी हुई है। नियति के अनुसार प्रकृति में परिवर्तन होता आया है, जिसमें कहीं भला होता है तो उसे 'होनी' कहा जाता है और अगर कहीं इन्सानी सोच के विपरीत होता है उसे 'अनहोनी' का दर्जा दिया जाता है, लेकिन ये मात्र व्यक्ति के विचार ही कहलाते हैं, क्योंकि 'जो हुआ, हो रहा है या भविष्य में होगा' यह सब नियति के अधीन है। प्रस्तुत पुस्तक 'होनी के हेर-फेर' में वरिष्ठ साहित्यकार, साहित्य-मनीषी, (हिन्दी गौरव सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान तथा साहित्य शिरोमणि सम्मान) से सम्मानित श्री रमाकान्त पाण्डेय 'अकेले' ने ऐसी अनेक घटनाओं को लघु कथाओं के रूप में पाठकों के बीच प्रस्तुत किया है, जिसमें प्राचीन समय को विशेषकर दर्शाया गया है। 'होनी के हेर-फेर' में 'रेवा' से लेकर 'पराजित हर्ष' तक कुल बीस कथाएँ सम्मिलित की गई हैं तथा अन्तिम इक्कीसवें क्रम में श्री पाण्डेय 'अकेले' ने उपसंहार के रूप में पुस्तक का सार प्रस्तुत किया है। प्रत्येक कहानी का शीर्षक साहित्यकार की अथक मेहनत का प्रमाण देता प्रतीत होता है। कहानियों की भाषाशैली सरल, सुबोध एवं अन्त: हृदय को छूती है। जहाँ एक ओर साहित्यकार ने हरेक कहानी के भावों को शुद्ध शब्दों में व्यक्त किया है तो वहीं दूसरी ओर हिन्दी के साथ-साथ संस्कृतप्रेमियों का भी अहम् खयाल रखा है। उक्त कथाकृति 'होनी के हेर-फेर' पठनीय, संग्रहणीय व उपहारयोग्य है।
होनी के हेर-फेर । Honi Ke Her-Pher
Author
Ramakant Pandey 'Akele'
Publisher
Sahityasagar
No. of Pages
160