कोई कवि काव्य-रचना में प्रवृत्त होते समय किस मनःस्थिति में था, उसे अपनी रचना की प्रेरणा किससे मिली, रचना का प्रेरणा-स्रोत क्या था, यह पूर्णतया निश्चित करना भले ही सरल न हो, किन्तु रचना करते समय मकु यह रहे जगत् में चीन्हा, बुध जन उसका आदर करें यह इच्छा भी कवि की रहती है। उसे उस समय भावानुभूति भी अवश्य होती है। कवियों की अपनी रचना का प्रयोजन दूसरों की रचना. से भिन्न होता है। पाठक भी काव्य को पढ़ने में किसी प्रयोजन से ही प्रवृत्त होता है। वह ज्ञान की अभिवृद्धि के प्रयोजन से भी पढ़ता है तो भी उसमें आनन्द प्राप्ति की इच्छा तो रहती ही है। काव्य का सम्बन्ध हृदय से है। आज मनुष्य का दृष्टिकोण भौतिकता प्रधान हो गया है। वह अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मण्डल बाँधता चला जा रहा है कि शेष सृष्टि के साथ अपने हृदय का सम्बन्ध भूला-सा रहता है।
नरोत्ततमदासजी ने जीवन क्षेत्र के लिए विविध प्रकार के आदर्श प्रस्तुत करने की अपेक्षा मैत्री के महत्त्व और आत्मीयतापूर्ण दाम्पत्य जीवन का चित्रण किया है। मित्रता एवं दाम्पत्य प्रेम के महत्त्व की चर्चा आज की परिस्थितियों में भी संगत है सम्बन्धों की उपेक्षा करके मनुष्य एकाकीपन अनुभव कर कष्ट ही पाता है।
सुदामा चरित | Sudama Charit
Author
Narottamdas Swami
Publisher
Pulkit Prakashan
No. of Pages
70