top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

सुखदा की यह कहानी सामने लाते हुए मेरा मन निःशंक नहीं है।

ढाढ़स यही है कि खुद इन पृष्ठों से जान पड़ता है उन्हें आशा थी कि ये कभी प्रकाश में आएँगे। आशा ही थी, निश्चय नहीं था। इसी से वर्णन कहीं अत्यन्त घनिष्ठ हो उठा है। मैंने इन स्थलों को तनिक छू या छोड़ देने की स्वतन्त्रता ली है। पर ऐसे कि पाठक की सहानुभूति रिक्त अनुभव न करे, न मर्म के स्पर्श से बचे।

सुखदा देवी हाल तक तो र्थी ही। उनके परिचित और सम्बन्धीजन अनेक हैं। स्मृति उनकी ठंडी नहीं हुई। ऐसे में उनकी कथा को जीवित करना जोखम का काम है। लेकिन कहानी अत्यन्त निष्कपटता से लिखी गयी है और अन्याय उसमें किसी के प्रति नहीं है।

उपसंहार में उन्होंने हमसे विदा ली है। किन्तु उसके नीचे एक तिथि भी लिखी पायी गयी। जग से ही उनके विदा लेने की तिथि में उससे काफी अन्तर है। इससे असम्भव नहीं कि इस कथा का उत्तरार्ध भी लिखा गया हो। वह प्राप्त हुआ तो यथावसर प्रस्तुत होगा। कहानी के ये पृष्ठ जैसे-तैसे हाथ आये थे, अतः उत्तरार्ध हुआ तो उसे पाने में उद्यम लगेगा। अपनी ओर से उस उपलब्धि में मैं प्रयत्न में कमी नहीं उठा रखूँगा, इतना ही कह सकता हूँ। आगे भगवान जाने।

- जैनेन्द्र कुमार

सुखदा । Sukhda

SKU: 9789326351317
₹110.00Price
Quantity
Only 1 left in stock
  • Jainendra Kumar

No Reviews YetShare your thoughts. Be the first to leave a review.

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page