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अनेक रियासतों व रजवाड़ों के शासन तथा राजपुताना संस्कृति के पुष्पित-पल्लवित होने के कारण कर्नल टॉड ने राजस्थान को 'राजपूताना' के नाम से ही उद्धत किया है। 18 रियासतों, दो ठिकानों और एक रेजीडेन्सी को सम्मिलित कर 30 मार्च, 1949 को राजस्थान का निर्माण किया गया, बाद में 15 मई, 1949 को मत्स्य प्रदेश भी शामिल कर लिया गया। इस प्रकार बहुवर्षीय सांस्कृतिक विविधता के कारण राजस्थान 'रंगीला राजस्थान' कहलाता है। प्रस्तुत पुस्तक में रजवाड़ों की सांस्कृतिक परम्परा, शासन प्रशासन व्यवस्था, आम जन-जीवन, जाति व वर्ण व्यवस्था, जजमानी व्यवस्था, पारम्परिक व्यवसाय, न्याय प्रणाली, आखेट अभिरूचि एवं अन्य प्रकार के मनोरंजन, लोक वार्ताएँ, लोक गीत, जीवन पथ के प्रमुख संस्कार, परिवार, विवाह नातेदारी, सामाजिक स्तरीकरण आदि का मानवशास्त्रीय निर्वचन के साथ विस्तृत वर्णन किया गया है। पुस्तक लेखन का मुख्य उद्देश्य निरन्तर विलुप्त होती हुई सांस्कृतिक धरोहर को नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करना रहा है। पुस्तक को अधिक प्रामाणिक एवं वस्तुनिष्ठ बनाने के लिए मानवशास्त्री अनुसंधान प्रविधियों का प्रयोग किया गया है। पुस्तक में उल्लिखित तथ्यात्मक जानकारी आनुभाविक एवं स्मरणपरक एकल अध्ययनों के माध्यम से संगृहीत की गई है। ऐतिहासिक एवं नृवंशीय विषय वस्तु हेतु पुस्तकालयों से भी सहायता ली गई है। इस पुस्तक में हमने 'सकारात्मक सापेक्षता' का पूर्ण प्रयास किया है अर्थात् रजवाड़ों की संस्कृति, परम्पराओं, मूल्यों, प्रतिमानों व रीति-रिवाजों की सांस्कृतिक सुषमा को अतीत के झरोखे से ही हृदयंगम किया है, जिससे कि "स्वकालवाद" एवं "स्व-संस्कृतिवाद" के पूर्वाग्रहों से बचें।

रजवाड़ों के रीति-रिवाज | Rajwadon Ke Reeti-Riwaj

SKU: 9788196398774
₹350.00 Regular Price
₹297.50Sale Price
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  • Author

    Rani Laxmi Kumari Chundawat

  • Publisher

    Rajasthani Granthagar

  • No. of Pages

    208

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