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1800 से 1925 ई. के मध्य, भील क्षेत्रों के लगभग दो सौ से अधिक भील मुखियाओं का संघर्ष कभी प्रकाश में नहीं आया था। खानदेश, मध्यभारत और महाराष्ट्र के ज्यादातर भील विद्रोह अछूते रह गए थे। 1857 के विद्रोह का जिक्र करते समय काजी सिंह, भीमा नायक, भागोजी, पुत्ता सिंह, मवासिया, खाला नायक, दुलार सिंह, सीताराम बावा, रघुनाथ सिंह मंडलोई, भोमिया बिसेन सिंह और कालू बाबा आदि के योगदान को भुला दिया गया था। एक दमित, अशिक्षित और प्रताड़ित समाज के संघर्षमय इतिहास की यह अनदेखी वाकई में चिंता का कारण इसलिए भी है कि भीलों ने देशहित में कभी पीठ न दिखाई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलनों के प्रारंभ हो जाने के बाद, 1925 तक उन्होंने लगातार संघर्ष किया, अपनी कुर्बानी दी। इस पुस्तक में संपूर्ण मध्यभारत, खानदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के भील क्षेत्रों के विद्रोहों को नए दस्तावेजों के आधार पर संग्रहित करने का प्रयास किया गया है। नए दस्तावेजों के आधार पर टंट्या भील एवं उनके सहयोगियों के जीवन संघर्षों को भी सामने लाने का प्रयास किया गया है।

भील विद्रोह : संघर्ष के सवा सौ साल । Bheel Vidroh : Sangharsh Ke Sawa Sau Saal

SKU: 9788195306107
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  • Author

    Subhash Chandra Kushwaha

  • Publisher

    Hind Yugm

  • No. of Pages

    358

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