यह परंपरागत सूफिवाद से एकदम अलग तरहा की शाइरी है। ‘मुनीर’ की शायरी में बनावट और बुनावट नहीं,सीधे-सीधे एहसास को अलफाज और जज़्बे को ज़बान देने का अमल है। उनकी शायरी का ग्राफ बाहर से अंदर और अंदर से अंदर की तरफ बढ़ता चला जाता है। एक ऐसी तलाश जो परेशान भी करती है और प्राप्य पर हैरान भी। जो हर सच्चे और अच्छे शाइर का मुकद्दर है।
देर कर देता हूँ मैं | Der Kar Deta Hun Main
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Author
Muneer Niyazi
Publisher
Vani Prakashan
No. of Pages
148
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