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कपालकुंडला बकिमचंद्र चटर्जी की रोचक, रोमांचक और रहस्य से परिपूर्ण प्रेमकथा है। जो कपालकुंडला कभी कापालिक के संरक्षण में रहती थी, वह अवसर पाकर नवकुमार की प्रेमिका और फिर पत्नी बनकर रहने लगी। इससे कापालिक इतना क्रोधित हुआ कि वह कपालकुंडला से प्रतिशोध लेने के लिए मचल उठा।

कापालिक ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी कि कपालकुंडला से अत्यंत प्रेम

करने वाला नवकुमार उसके चरित्र पर संदेह करने लगा। यहां तक कि यह

कपालकुंडला के प्राण लेने के लिए तत्पर हो उठा।

बंकिमचंद्र इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए कापालिक द्वारा नवकुमार को समझाते

हुए 'कपालकुडला' में लिखते हैं- 'वत्स! कपालकुंडला वध के योग्य है। में भवानी की आज्ञानुसार उसका वध करूंगा। वह तुम्हारे प्रति भी विश्वासघातिनी है, अतएव तुम्हें भी उसका वध करना चाहिए। अविश्वासी को पकड़कर मेरे यज्ञ-स्थान पर ले चलो। वहां अपने हाथ से उसका बलिदान करो। भगवती का उसने जो अपकार किया है, इससे उसे उसका दंड मिलेगा, पवित्र कर्म से अक्षय पुण्य होगा...।"

कपालकुंडला | Kapalkundala

SKU: 9789389717075
₹150.00 Regular Price
₹135.00Sale Price
Quantity
Out of Stock
  • Author

    Bankimchandra Chatterjee 

  • Publisher

    Fingerprint

  • No. of Pages

    148

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