भक्तिकाल के कृष्ण-भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का स्थान सर्वोपरि है। इसका कारण यह है कि सूर ने भक्ति के जिस स्वरूप का दिग्दर्शन कराया, वात्सल्य के जिस सर्वश्रेष्ठ स्वरूप का परिचय कराया, भ्रमरगीत के माध्यम से निर्गुण पर सगुण की विजय का जो अनोख काव्य रूपक गीति शैली के माध्यम से प्रस्तुत किया वह अन्यत्र दुर्लभ है।
यद्यपि सूर के काव्य में भक्ति, विनय और श्रृंगाल की अमृत स्रोतस्विनी प्रवाहित हुई है तथापि वात्सल्य वर्णन में सूर का कोई सानी नहीं है। भाव-भाषा और तर्क का जैसा अद्भुत, समन्वय सूर की लेखनी से हुआ है, वह युगों-युगों तक अविस्मरणीय रहेगा।
सूरसागर में लगभग सवा लाख पदों की संख्या की बात की जाती है किन्तु नागरी प्रचारिणी, काशी द्वारा सम्पादित सूरसागर में उपलब्ध पदों की संख्या पच्चीस हजार है। ऐसे में सूर के पदों में से लगभग 60-70 पदों का चयन सम्पादक द्वारा किया गया है। जिसमें सूर काव्य की झाँकी प्रस्तुत की गई है।
सूर के काव्य से परिचय कराना तो इस कृति का उद्देश्य है ही साथ ही काव्यमाधुर्य की सरिता में सामान्य जन से सुधी पाठकों अवगाहन कराना भी इस कृति का अभीष्ट है। चयनित पदों का सरलार्थ किया गया है ताकि सूर के पदों का हृदयंगम किया जा सके।
ऐसा सम्पादक जिसे आप न केवल अपना स्नेहाशीष प्रदान करेंगे बल्कि अपने मित्रों, जिज्ञासु पाठकों और साहित्यानुरागियों को भी अध्ययनार्थ प्रेरित करना चाहेंगे।
सूर सुबोध पदावली । Soor Subodh Padawali
Author
Preetam Prasad Sharma
Publisher
Sahityagar
No. of Pages
82