खंड में सम्मिलित पुस्तकें ः
1. अर्थला ः-
देवासुर-संग्राम का प्रथम चरण
मिट्टी से घड़े बनाने वाले मनुष्य ने हजारों वर्षों में अपना भौतिक ज्ञान बढ़ाकर उसी मिट्टी से यूरेनियम छानना भले ही सीख लिया हो, परंतु उसके मानसिक विकास की अवस्था आज भी आदिकालीन है।
काल कोई भी रहा हो- त्रेता, द्वापर या कलियुग, मनुष्य के सद्गुण और दुर्गुण युगों से उसके व्यवहार को संचालित करते रहे हैं।
यह गाथा किसी एक विशिष्ट नायक की नहीं, अपितु सभ्यता, संस्कृति, समाज, देश-काल, निर्माण तथा प्रलय को समेटे हुए एक संपूर्ण युग की है। वह युग, जिसमें देव, दानव, असुर एवं दैत्य जातियाँ अपने वर्चस्व पर थीं। यह वह युग था, जब देवास्त्रों और ब्रह्मास्त्रों की धमक से धरती कंपित करती थी। हुआ
शक्ति प्रदर्शन, भोग के उपकरणों को बढ़ाने, नए संसाधनों पर अधिकार तथा सर्वोच्च बनने की होड़ ने देवों, असुरों तथा अन्य जातियों के मध्य ऐसे आर्थिक संघर्ष को जन्म दिया, जिसने संपूर्ण जंबूद्वीप को कई बार देवासुर संग्राम की ओर ढकेला परंतु इस बार संग्राम-सिंधु की बारी थी। वह अति विनाशकारी महासंग्राम जो दस देवासुर संग्रामों से भी अधिक विध्वंसक था।
संग्राम-सिंधु गाथा का यह खंड देव, दानव, असुर तथा अन्य जातियों के इतिहास के साथ देवों की अलौकिक देवशक्ति के मूल आधार को उद्घाटित करेगा।
2. मल्हार ः-
देवासुर-संग्राम का दूसरा चरण
'मल्हार' की कहानी ठीक वहीं से आरंभ होती है, जहाँ प्रथम भाग की समाप्ति हुई थी।
दूसरा भाग असुर देश, मुंद्रा, सौराष्ट्र तथा ऊसर की रोमांचक यात्रा करते हुए आगे बढ़ता है, और कई नई घटनाओं माध्यम से अर्थला के कल्पनातीत संसार को विस्तारित भी करता जाता है।
संग्राम - सिंधु गाथा का यह खंड असुरों के व्यापार, उनकी राजनैतिक स्थिति और आगामी युद्ध में उनकी भूमिका के पीछे के कारणों पर प्रकाश डालेगा।
अकल्पित युग की यात्रा जारी है....
संग्राम-सिंधु गाथा खंड 1-2 | Sangram-Sindhu Gatha Volumes 1-2
Author
Vivek Kumar
Publisher
Hind Yugm
No. of Books
2
No. of Pages
447+256