सत्य अहिंसा के पुजारी त्यागी, निर्मोही, दीन मसीहा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को समर्पित यह पुस्तक है।
यह काव्य संग्रह सम्यक् संकल्पकों सम्यक् वचन को तथा सम्यक् कर्म को रेखांकित करता है। इन कविताओं में आत्मविश्वास की पुष्टि है। ये कविताएँ सत्य का अहसास करवाती है। ये कविताएँ किसी भी प्रकार से वादों के घेरे में न रहकर दावों के साथ संवाद स्थापित करती है, रिश्ते भी बुनियादी रखती हैं। पाठकगण इन कविताओं को पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि अभय और सत्य की साधना ही कलियुग में सतयुग निर्मिती कर सकती है क्योंकि सत्य ही सार है वही भगवान है। जीवन दो केन्द्रों में केन्द्रित है एक वैयक्तिक दूसरा सामूहिक । सामूहिकता में ही साम्यता, समानता की प्रधानता है। रचनाकार जयपालसिंहजी ने इन कविताओं के माध्यम से सबका हित हो की कामना की है। सत्य/असत्य के विभेद को समझाते हुए 'सत्य' का अनुसरण करने का आग्रह किया है। यही आग्रह जीवन का सार है समता ही धर्म है को परिभाषित करती है। जो समस्या उभरती हैं उनके पीछे मनोविकार है इनका ही उन्मूलन हो। सत्ता और संपत्ति के पीछे जो धावक है उसकी दौड़ न गरिमामय है व न सुरक्षित है। केवल मायाजाल है। इससे दूर होने का संदेश है। रचनाकार इन कविताओं के माध्यम से
स्पष्ट करना चाहते हैं कि जिसका मन निर्मल है, निःस्वार्थ है वह भयमुक्त है, जिसके पास संतोषधन है वह सेवाधर्म को अंगीकार करता है वही मोहमुक्त है। भयमुक्त, मोहमुक्त का दिग्दर्शन करनेवाली ये कविताएँ आनंद की छटा बिखेरती हैं। क्योंकि आनंद ही मुक्ति का पर्याय है जहाँ सत्य है वही सुख सागर है, सुख का मूल ही निष्काम कर्म है। इन्हीं सद्भावनाओं को दर्शाती ये कविता
सत्यांश। Satyansh
Jaypal Singh Yadav