अनिंद्य सौन्दर्य से बोझिल किशोरियों का प्रसृण सान्निध्य मात्र ही किसी भी पुरुष में उत्साह भर देता है, यही नहीं वह उसमें पौरुषेय ऊष्मा का सर्जन भी कर देता है और यदि कहीं ऐसे में उसके अंग-प्रत्यंग का स्पर्श हो जाए तो उस पुरुष को उन्माद से सम्पूरित कर उर्मिल स्पन्दन प्रदान किये बिना नहीं रहता । प्राणोज सम्पन्न यावज्जीवन के सौख्यपूरित पृष्ठांकन में जब अनुरागसिक्त मन स्वयं के अन्तरतम से प्रस्फुटित हो उठता है। तो यह प्रिय के प्रति अर्पित होने का अध्यवसाय नहीं करता अपितु प्रिय के प्रति समर्पित हो जाता है। वस्तुतः यह विशुद्ध आराधना ही है। कुन्तला युवराज चन्द्रगुप्त के प्रति समर्पिता रहते हुए व्यजनवाहिका ही बनी रही, तो भी ध्रुव स्वामिनी ने उसे अपनी सखी बनाकर ही प्रसन्नता का अनुभव किया।
दासीपुत्र रामगुप्त के काल की तरह जब किसी शासन में शासनाध्यक्ष स्वर्ण, सुवर्णा तथा सौख्येतर सुखोपभोगों की ओर आकर्षित हो जाता है तब राज्यसत्ता की धुरी अपने आप तिर्यक होकर जन-जन को पथच्युत कर देती है, परिणामतः शासनाध्यक्ष के साथ राज्य का भी सर्वनाश अवश्यम्भावी हो जाता है, रमाकान्त पाण्डेय 'अकेले' ने धीरोदात्तनायकों में से अपेक्षाकृत कम चर्चित नायक की कथा को प्रामाणिक रूप में कल्पनाप्रसूत ताना- बाना रचकर प्रांजल भाषा में प्रस्तुत कर एक स्तुत्य प्रयास किया है।
वाग्दत्ता | Vagdutta
Author
Ramakant Pandey 'Akele'
Publisher
Sahitya Chandrika
No. of Pages
160