एक विशुद्ध व्यावहारिक अर्थ में तो शायद यह कहना सही होगा कि यह सब उस समय शुरू हुआ, जब सोफ़ी मोल आयमनम आई। शायद यह सच है कि एक ही दिन में चीजे बदल सकती हैं। कि चंद घंटे समूची जिन्दगियों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। और यह कि जब वे ऐसा करते हैं, उन चंद घंटों को किसी जले हुए घर से बचाए गए अवशेषों की तरह करियाई हुई घड़ी, आँच लगी तस्वीर, झुलसा हुआ फर्नीचर खंडहरों से समेट कर उनकी जाँच-परख करनी पड़ती है। संजोना पड़ता है। उनका लेखा-जोखा करना पड़ता है।
फिर भी, यह कहना कि वह सब कुछ तब शुरू हुआ जब सोफी मोल आयमनम आई, उसे देखने का महज एक पहलू है।
साथ ही यह दावा भी किया जा सकता था कि वह प्रकरण सचमुच हज्जारों साल पहले शुरू हुआ था। मार्क्सवादियों के आने से बहुत पहले। अंग्रेजों के मलाबार पर कब्जा करने से पहले, डच उत्थान से पहले, वास्को डि गामा के
आगमन से पहले, जमोरिन की कालिकट विजय से पहले। किश्ती में सवार ईसाइयत के आगमन और चाय की थैली से चाय की तरह रिसकर केरल में उसके फैल जाने से भी बहुत पहले हुई थी।
कि वह सब कुछ दरअसल उन दिनों शुरू हुआ जब प्रेम के कानून बने। वे कानून जो यह निर्धारित करते थे कि किस से प्रेम किया जाना चाहिए, और कैसे।
और कितना ।
बहरहाल, व्यावहारिक रूप से एक नितान्त व्यावहारिक दुनिया में... वह दिसम्बर उनहत्तर का (उन्नीस सौ. अनुच्चारित था) एक आसमानी नीला दिन था। एक आसमानी रंग की प्लिमथ, अपने टेलफ़िनों में सूरज को लिये, धान के युवा खेतों और रबर के बूढ़े पेड़ों को तेजी से पीछे छोड़ती कोचीन की तरफ़ भागी जा रही थी....
मामूली चीज़ों का देवता | Mamooli Cheezo Ka Devta
Author
Arundhati Roy
Publisher
Rajkamal Prakashan
No. of Pages
295