बीसवीं शताब्दी का प्रथमार्थ महिला जागरण का तो उत्तरार्ध महिला प्रगति का था। इक्कीसवीं शताब्दी महिला सशक्तीकरण की लहर लेकर आई।
ये सशक्तीकरण क्या है ? Lightfood (1986) defined empowerment in terms of the opportunity an individual has for autonomy, responsibility, choice and authority.
सशक्तीकरण सक्षमीकरण, अधिकारिता या जो भी इसे कहा जाए वास्तव में चेतना और विकास की दिशा- निर्देश करने का दूसरा नाम है, इसीलिए 'सशक्त नारी सशक्त समाज' इसका 'ब्रीद वाक्य' है। सशक्तीकरण प्रक्रिया के मुख्य अंग कल्याण, सबलीकरण एवं आधार-आधारित दृष्टिकोण हैं। कल्याण जागरूकता से संबंधित है जो आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक संसाधन उपलब्ध कराता है। सबलीकरण समाज के सभी व्यक्तियों को एक प्लेटफार्म पर लाकर सामूहिक कार्य की संधि देकर सशक्त बनाता है। अधिकार-आधारित दृष्टिकोण जीवन को जीने योग्य बनाता है।
महिला सशक्तीकरण पुरुषों से अधिकार छीनने की नहीं, पुरुषों बराबर खड़े होने की नहीं अपितु वंचितों के दुर्बलीकरण की समाप्ति की प्रक्रिया है, महिला को चूल-मूल (चूल्हा- बच्चा), घर और घूँघट के संकीर्ण दायरे से बाहर निकालने की प्रक्रिया है। पुरुष अपूर्णांक है महिला पूर्णांक । महिला शक्ति है। दुर्गा के सिवा और किसी का वाहन 'सिंह' नहीं है। नारी, पुरुष की पाशविकता पर नियंत्रण रखती है, संतति को संस्कार देती है। उसकी अवहेलना से भारतीय समाज के दामन पर पहले ही कई धब्बे लगकर इतिहास और संस्कृति को लज्जित कर चुके हैं।
भारत की 151 प्रथम महिलाएँ | Bharat Ki 151 Pratam Mahilayen
Author
Dr. Bano Sartaj
Publisher
Apolo Prakashan
No. of Pages
335