अतीत से सीखना जरूर चाहिए, लेकिन सीखा तभी जा सकता है जब हम अतीत के अतीतपन का सम्मान करें। वर्तमान के राजनीतिक या सामाजिक द्वन्दों को अतीत पर आरोपित करने से वर्तमान और अतीत दोनों की समझ धूमिल होती है। इस पुस्तक के आरम्भ में ही हौली इसे 'ऐतिहासिक तर्क और विवेक के प्रति अपील' कहते हैं, इन कवियों की रचनाशीलता और इनके समय के साथ कल्पनापूर्ण, आलोचनात्मक संवाद के महत्त्व पर बल देते हैं। ऐसे संवाद के बिना भक्ति-संवेदना का संवेदनशील अध्ययन असम्भव है।
हौली इस पुस्तक में इन तीन कवियों से जुड़े विशिष्ट सवालों-समय, रचनाओं की प्रामाणिकता, संवेदना का स्वभाव, लोक-स्मृति में उनका स्थान- आदि पर तो विचार करते ही हैं, वे इनके बहाने भक्ति-संवेदना से जुड़े व्यापक प्रश्नों पर भी विचार करते हैं। पाठ-निर्धारण ऐसा ही प्रश्न है। इसी तरह का सवाल है निर्गुण-सगुण विभाजन का ।
भक्ति के तीन स्वर - मीराँ, सूर, कबीर | Bhakti Ke Teen Swar - Meera, Sur, Kabir
Author
Jaun Straitan Hauli
Publisher
Rajkamal Prakashan
No. of Pages
250