पुराने समय में, किसी गांव में एक निर्धन वृद्धा स्त्री रहती थी। उसकी एक सुन्दर तथा विनम्र कन्या थी। एक दिन उसकी माता ने थाली में चावल डालकर धूप में रखे और पुत्री को आदेश दिया कि धूप में रखे हुए चावलों की पक्षियों से रक्षा करो। कुछ ही समय के बाद एक विचित्र कौआ उड़कर उसके पास आया। सोने के पंखों वाला, चांदी की चोंच वाला। सोने का कौआ उसने कभी नहीं देखा था। उस कौवे को चावल खाते हुए तथा हंसते हुए देखकर बालिका रोने लगी। कौवे को रोकती हुई वह बोली-चावल मत खाओ। मेरी माता बहुत ही निर्धन है। स्वर्ण पंख वाले कौवे ने कहा-तुम चिन्ता मत करो। कल सूर्योदय से पहले, गांव से बाहर पीपल के पेड़ के पास तुम आना। मैं वहां तुम्हें चावलों का मूल्य दूंगा। यह सुनकर बालिका प्रसन्न हुई और उसे रात में पूरी नींद भी नहीं आई।
बाल कथा कोष । Bal Katha Kosh
Author
Padma Shastri
Publisher
M.M. Publisher
No. of Pages
160