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आशुतोष गर्ग की चमत्कारी कलम के ज़रिए पौराणिक कथाओं के प्रभावशाली विश्लेषण को पढ़ना एक सुखद अनुभव है।

- अशोक चक्रधर (पद्मश्री)

लेखक, साहित्यकार एवं कवि

 

'ब्रज को पानी में डुबा दो!' देवराज इंद्र ने गरजकर कहा। 'मैं चाहता हूं कि इस छोटे-से गांब ब्रज का एक-एक व्यक्ति पानी में डूबकर मर जाए! इन मूर्बो को देवलोक के राजा पुरंदर का अपमान करने का फल मिलना ही चाहिए!'

 

अधिकांश संसार, देवताओं के राजा को 'इंद्र' के नाम से जानता है। परंतु वास्तव में 'इंद्र' किसी का नाम नहीं, अपितु देवलोक के राजा की पदवी है। प्रत्येक मनवन्तर के अंत में देवताओं का नया राजा नियुक्त होता है जो फिर उस मनवन्तर का 'इंद्र' कहलाता है। वर्तमान इंद्र का नाम है - पुरंदर!

 

महर्षि कश्यप एवं अदिति का पुत्र पुरंदर, अपनी असाधारण योग्यताओं तथा विलक्षण उपलब्धियों के दम पर इंद्रासन तक पहुँच तो गया किंतु उस महान पद पर उसने ऐसे कौन-से कर्म किए, जिनके कारण उसकी छवि कलंकित हो गई और उसे देवताओं व मनुष्यों से सम्मान और विश्वास कभी प्राप्त नहीं हुआ जिसका वह अधिकारी है? यह दुर्भाग्यपूर्ण, किंतु सत्य है कि अपने चरित्र पर लगे इन कलंकों से बेपरवाह पुरंदर को केवल • इंद्रासन के छिन जाने का भय है, जिसकी रक्षा के लिए वह आवेश में अपनी शक्तियों का बार-बार दुरुपयोग करता और बाद में पछताता है।

 

इस पुस्तक में लेखक ने विभिन्न कथाओं का तान-बाना बुनकर पुरंदर के प्रभावशाली किंतु चंचल व्यक्तित्व को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

इंद्र । Indra

SKU: 9789388241731
₹299.00 नियमित मूल्य
₹269.10बिक्री मूल्य
मात्रा
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  • Author

    Ashutosh Garg

  • Publisher

    Manjul Publishing

  • No. of Pages

    336

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