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साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फॉर्म है । यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें । लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े–बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है । मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फॉर्म से रू–ब–रू हो सकें और दूसरा यह कि टी–वी– और सिनेमा में दिलचस्पी रखने वाले लोग यह देख–जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है । टी–वी– की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इजाप़़ा हो गया है । यह फिल्म ‘इजाज़त’ का मंज़रनामा है । इस फिल्म को अगर हम औरत और मर्द के जटिल रिश्तों की कहानी कहते हैं, तो भी बात तो साप़़ हो जाती है लेकिन सिपऱ़् इन्हीं शब्दों में उस विडम्बना को नहीं पकड़ा जा सकता, जो इस फिल्म की थीम है । वक़्त और इत्तेप़़ाक़़्, ये दो चीजें आदमी की सारी समझ और दानिशमंदी को पीछे छोड़ती हुई कभी उसकी नियति का कारण हो जाती हैं और कभी बहाना । पानी की तरह बहती हुई इस कहानी में जो चीज़ सबसे अहम है वह है इंसानी अहसास की बेहद महीन अक़्क़़्ाशी, जिसे गुलज़ार ही साध सकते थे । इस कृति के रूप में पाठक निश्चय ही एक श्रेष्ठ साहित्यिक रचना से रू–ब–रू होंगे ।

इजाज़त | Ijajat

SKU: 9788183614115
₹395.00 नियमित मूल्य
₹335.75बिक्री मूल्य
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  • Gulzar

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