सोनरूपा, एक ऐसी लड़की जिसमें बचपना अभी तक उछाल मारता है, एक ऐसी स्वप्न-छवि जो हकीकत का हाथ नहीं छोड़ती, एक ऐसी नदिया जिसकी कल-कल आज में समाहित होना चाहती है, एक ऐसी हवा जो खुशबू को अपनी सहचरी बनाती है, एक ऐसी मिट्टी जिसमें संवेदना के बीच स्वयमेव अंकुरित होते रहते हैं. एक ऐसी आँच जो मन के दीवट में ज्योति बनकर मुस्कराती है और क्या-क्या कहूँ अपनी इस सोनचिरैया- सी बिटिया के बारे में, वह जब पर फैलाती है तो आकाश गाने लगता है, वह जब तुमकती है तो धरती का कण-कण घुँघरू बनकर नाचने लगता है, जब मुस्कराती है तो चमन के फूल खिल उठते हैं, चलती है तो हर मौसम उसका स्वागत करता है,
अमेरिका और 45 दिन । America Aur 45 Din
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Sonroopa Vishal
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