ऐतिहासिक उपन्यास लिखना आज उस डॉक्टर के पेशे के समान हो गया है जो रोगी के न चाहते हुए भी उसे कड़वी दवा देता है, रोगी के हाथ-पैर मारने के बावजूद उसे दर्द भरा इंजेक्शन दे देता है। और फ़िर कुछ समय बाद वही रोगी डॉक्टर की क्षमता को सलाम करते हुए मन ही मन उसका आभारी होता है।
अनिश्चित भविष्य और जटिल वर्तमान के गुंजलक में उलझा आज का पाठक चाहते हुए भी गुज़रे वक़्त के साथ समय बिताने के लिए समय नहीं निकाल पाता। लेकिन यदि उसके हाथ में प्रतिष्ठित लेखक दुर्गा प्रसाद माथुर के 'अद्भुत आत्म बलिदान' जैसा कोई कथानक लग जाए तो शायद वो ये बात भूल ही जाए कि वो क्या चाहता है, क्या नहीं। वो अतीत की गुफ़ाओं में प्रवेश करके गुज़रे ज़माने के शौर्य, पराक्रम, प्रतिशोध, सत्ता-अन्वेषण और उत्कट जिजीविषा की नयनाभिराम प्रदर्शनी को देखने में रम जाए।
हम म्यूजियम - संग्रहालयों में पैसे खर्च करके शूरवीरों के वो वस्त्र देखने जाते हैं जिन्हें हम स्वयं आज उठा भी नहीं सकते, वो भाले-तलवारें चाव से देखते हैं जिनसे आज कोई लड़ नहीं सकता, तो शायद हम शौर्य-गाथाओं की उस ज्वलंत मार्मिकता को ही महसूस करने की अदम्य लालसाओं के वशीभूत इतिहास - गह्वरों में विचरते हैं।
अद्भुत आत्म बलिदान । Adbhut Atma Balidan
Author
Durga Prasad Mathur
Publisher
Sahityagar
No. of Pages
184